जानें कैसे तय होती हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें, ये है पूरा हिसाब-किताब
क्या
आप जानते हैं कैसे होता है तेल और
पेट्रोल प्राइज का कैल्कुलेशन. आप तेल
की कितनी कीमत चुका रहे हैं,
और उसका
कितना प्रतिशत पैसा टैक्स के रूप में सरकार के पास जा रहा है.
देश में बीते चार सप्ताह से
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के चलन से उलट
पेट्रोल की कीमत में प्रति लीटर 2.16 रुपए और डीजल की कीमत में
2.10 रुपए की कमी की गई है.क्या आप जानते
हैं आप तेल के लिए जितनी कीमत चुका रहे हैं, उसका आधे से ज्यादा पैसा टैक्स के रूप में सरकार के पास जा रहा है. असल
में पेट्रोल की कीमत काफी कम है, आइए हम आपको पेट्रोल के दामों
का पूरा गणित बता रहे हैं कि आखिर पेट्रोल के
दाम कैसे तय हो रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में अब कच्चे तेल
के एक बैरल की कीमत 30 डॉलर से भी कम हो गई है, कच्चे तेल की कीमत पिछले ग्यारह साल में इतनी कम पहले कभी नहीं थी, लेकिन तेल के
लुढ़कते दामों का जो फायदा उपभोक्ता को मिलना चाहिए था, वह फायदा सरकार
खुद उठा रही है.
दरअसल कच्चे तेल पर बेसिक कस्टम
ड्यूटी, बेसिक सेनवेट ड्यूटी और केंद्रीय एक्साइज कर
लगाया जाता है. वहीं पेट्रोल और डीजल पर बेसिक कस्ट्म ड्यूटी, एडिशनल कस्टम
ड्यूटी, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी और एडिशनल कस्टम ड्यूटी बेसिक सेनवेट ड्यूटी, सेल्स टैक्स या
वैट, पॉल्यूशन सेस, सरचार्ज आदि
लगाया जाता है
तेलों में गिरावट का 2004 के बाद का ये
सबसे निचला स्तर है. भारतीय बास्केट में इसकी कीमत को आंका जाए एक बैरल तेल की कीमत 2001.28 रुपये होती है.
आपको बता दें कि सबसे पहले रिफाइनरी
में कच्चे तेल से पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम पदार्थ निकाले जाते हैं. फिर कंपनियां अपना मुनाफा
बनाकर पेट्रोल पंप तक तेल भेजती है. फिर पेट्रोल पंप मालिक तयशुदा कमीशन
वूसलता है और आम आदमी सरकार के टैक्स देकर ये तेल खरीदता है
वहीं अगर देश के अलग-अलग राज्यों में
तेल पर लगने वाले वैट की बात करें तो आंध्रप्रदेश में सबसे ज्यादा वैट वसूला जाता है जबकि लक्षद्वीप, अंडमान में सबसे कम यानी 0 प्रतिशत वसूला
जाता है. आंध्र प्रदेश में पेट्रोल पर 39.66
फीसदी, डीजल पर 32.72 फीसदी वैट वसूला जाता है.
पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ने के कारण
देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 3 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, जिससे उपभोक्ता
चिंतित हैं।
- उनका मानना है जब इन उत्पादों पर लगने
वाले करों में बार-बार फेरबदल किया
जा रहा हो तो बाजार आधारित कीमतों की
अवधारणा का कोई मतलब नहीं है। जब
कच्चे तेल के दाम लगातार गिर रहे हैं
तो देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें
बढ़ रही है, जबकि 2014 के मई में कच्चे तेल की कीमत 107 डॉलर प्रति बैरल
थी, उस वक्त अभी से
सस्ता पेट्रोल मिल रहा था।
यह सच है कि पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल की कीमतें 45.60 रुपये प्रति
बैरल से लेकर अभी तक 18 फीसदी बढ़ी है, जिसका नतीजा है
कि दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 65.40
रुपये से बढ़कर 70.39 रुपये तक पहुंच गई है।
यह बढ़ोतरी कच्चे तेल के दाम में
बढ़ोतरी की तुलना में कम है। लेकिन साल 2014 के मई में कच्चे तेल की कीमत 107
रुपये प्रति बैरल
पहुंच जाने के बाद भी दिल्ली में 1
जून 2014 को पेट्रोल की
कीमत 71.51 रुपये प्रति लीटर थी और ग्राहक यह तुलना कर रहे
हैं।
एसोचैम के नोट में
कहा गया, "जब कच्चे तेल की कीमत 107 डॉलर प्रति बैरल थी,
तो देश में यह
71.51 रुपये लीटर बिक रही थी। अब जब यह घटकर 53.88 डॉलर प्रति बैरल आ गई
है तो उपभोक्ता तो यह पूछेंगे ही कि
अगर बाजार से कीमतें निर्धारित होती
है तो इसे 40 रुपये लीटर बिकना चाहिए।"
इसमें कहा गया है कि हालांकि कीमतों को बाजार पर छोड़ा गया है,
लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिए जानेवाले उत्पाद कर और बिक्री कर या वैट में तेज बढ़ोतरी के कारण
सुधार का कोई मतलब नहीं रह गया है।
एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत ने कहा, "उपभोक्ताओं की कोई गलती नहीं है। क्योंकि सुधार
एकतरफा नहीं हो सकता।
अगर कच्चे तेल के दाम गिरते हैं तो
उसका लाभ उपभोक्ताओं को दिया जाना
चाहिए।"
चेंबर ने कहा कि
हालांकि यह सच है कि सरकार को अवरंचना और कल्याण योजनाओं के लिए संसाधनों की
जरुरत होती है, लेकिन
केंद्र और राज्यों की पेट्रोल और डीजल पर जरुरत से ज्यादा निर्भरता आर्थिक विकास
को प्रभावित करती
है।
चेंबर ने कहा,
"इसका असर आर्थिक
आंकड़ों पर दिख रहा है। साल-दर-साल आधार पर अगस्त में
मुद्रास्फीति की दर क्रमश: 24 फीसदी
और 20 फीसदी थी। इससे ऐसे
समय में जब उद्योग को निवेश के लिए कम महंगे वित्तपोषण की जरुरत है, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों
को घटाने की संभावनाओं पर असर पड़ता है।
|
Right
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