KHELO ME MAHILA SHASHAKTIKARAN, खेलों में महिला सशक्तिकरण, A PROJECT REPORT ON INDIAN'S WOMAN CONTRIBUTION IN SPORTS



खेलों में महिला सशक्तिकरण



                                                      
उन्‍नीसवीं सदी के मध्‍यकाल से लेकर इक्‍कीसवीं सदी तक आतेआते पुन: महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ और-महिलाओं ने शैक्षिक राजनीतिक, सामाजिक आ‍र्थिक धार्मिक प्रशासनिक खेलकूद आदि विविध क्षेत्रों में उपलब्धियों के नए आयाम तय किये। आज महिलाए आत्‍मनिर्भर स्‍वनिर्मित आत्‍मविश्‍वासी हैं जिसने पुरूष प्रधान चुनौती पूर्ण क्षेत्रों में भी अपनी योग्‍यता प्रदर्शित की है। वह केवल शिक्षिका नर्स स्‍त्री रोग की डाक्‍टर न बनकर इंजीनियर पायलट वैज्ञानिक तकनीशियन सेना पत्रकारिता जैसे नए क्षेत्रों को अपना रहीं है। खेल जगत में पी.टी. ऊषा. अजूं बाबी जार्ज साईना नेहवाल सानिया मिर्जा अंजू चोपड़ा, मिताली राज आदि ने नए कीर्तिमान स्‍थापित किये है। आइपीएस किरण बेदी, अंतरिक्ष यात्री सुनिता विलियम्‍स आदि ने उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करके विविध क्षेत्रों में अपने बुद्धि कौशल का परिचय दिया है।

परिचय:

अगर हम थोड़े व्‍यापक ढ़ग से बात करते है तो सबसे पहले शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार और व्‍यवसाय के क्षेत्र में और अब पुरूषों के सम्‍पूर्ण वर्चस्‍व वाले क्षेत्र जिसमें औरतों के भविष्‍य के बारे में सोचना भी मुश्किल था। उस खेल के क्षेत्र में महिलाओं ने जो स्‍थान बनाया है उसमें हमारे देश की आधी आबादी को सम्‍मान के साथ गर्व की भी अधिकारी बना दिया है, पर कभी-कभी मन में एक बात आती है कि आखिर कैसा होता होगा उस पर परिवार का माहौल जहॉ भ्रूण हत्‍या को अंजाम दिया गया होगा क्‍या वह लोग आपस में नजर मिला पाते होगें क्‍या देश की बेटी की जीत से उनका सीना चौड़ा होता होगा। या ऐसे मौके पर जब देश जश्‍न मनाता है वे अंधेरे बंद कमरे में अपने बेटों के साथ भविष्‍य की कोरी कल्‍पनाएं बुनते होगे, खैर हम ऐसे लोगों को उनके अधेरें कमरे में बन्‍द उज्‍जवल सपनों के साथ छोड़कर आगे बढ़ते है, तो कौन कहता है भारत अपनी बेटियों से प्‍यार नहीं करता जब भी भारत का कोई खिलाड़ी ओलम्पिक पदक जीतता है तो हर भारतीय खुश होता है, लेकिन जब वह पदक जीतने वाला खिलाड़ी कोई महिला होती है तो खुशी की सिमाएं ही समाप्‍त हो जाती है। इस बात में रत्‍ती भर भी संदेह नहीं है, किन्‍तु अब उनके पास कुछ नहीं बल्कि बहुतायत में कुछ करने के लिए नए रास्‍ते उपलब्‍ध हैं। भारत में हर महिला खिलाड़ी का सम्‍मान किया है चाहे वह जीती हो न जीती हो या जीत के करीब पहुच कर लौटी हो ......सबसे पहले 1988 में भारत की एथीलीट पीटी ऊषा ने अपनी प्रतिभा से सबका दिल जीत लिया था . वे 1980 में ओलम्पिक में फाइनल तक पहुचने वाली पहली भारतीय महिला बनी फिर क्‍या था हर कोई पीटी ऊषा का ही उदाहरण पेश करने लगा था, कुछ ऐसा ही 2016 के ओलम्पिक में जिमनास्टिक्‍स में दीपा कर्मकार ने किया है। वह भले ही चौथे नंबर पर रही लेकिन भारत के लोगों ने उन्‍हें वह जगह दी है जो ओलम्पिक में गोल्‍ड जीतने के बाद मिलती है.....ओलम्पिक में पहली बार भाग ले रही भारत की युवा महिला गोल्‍फर आदिति आशोक ने भी अपने खेल से सबका ध्‍यान खींचा।


सच कहता हूँ इस तरह की खबरें सिर्फ एक महिला को ही नहीं पुरूषों को भी रोमांचित करती है, देश के हर गॉव हर कस्‍बे और हर शहर में लोग अपने घर की बेटी को बड़ी उम्‍मीदों से देखने लगते हैं। और इसका श्रेय जाता है उन तमाम एथिलीट्स को जिन्‍होंने ओलम्पिक जैसे विश्‍व स्‍तर के खेल आयोजन में न सिर्फ भाग लिया बल्कि अपने देश के लिए पदक भी जीता. ओलम्पिक की शुरूआत के बाद कई दिन बीत जाने के बाद भी जब भारत की झोली में एक भी पदक नहीं आया जबकि जिनसे उम्‍मीद थी ओ सारे खिलाड़ी नाकामयाब रहे तो कुछ श्रेष्‍ठ खिलाड़ी भी बारिक अन्‍तर से चूक गये थे। ऐसे में अप्रत्‍याशित तरिके से भारत के लिए पदक कमाया महिला खिलाडि़यों नें.जी हा महिला कुश्‍ती मे साक्षी मलिक और बैडमिटंन में पीवी सिधु ने हमारी लाज जैसे तैसे बचा ली इनके पदक हासिल करने के बाद एकाध दिनों में भी भारतीय उम्‍मीदे फुस्‍स ही रही और सवासौ करोड़ आबादी की इज्‍जत उन्‍हीं महिलाओं बचाई जिसका विभिन्‍न स्‍तर पर अपमान होता ही रहता है।

आती है हर बार जब ऐसे खेल के आयोजन समाप्‍त होते है तो समीक्षा के रूप में एक बात निकल के सामने की हमारे देश में खिलाडि़यों को उचित सुविधाऐं नहीं मिलती जिससे उनका प्रदर्शन बेहतर नहीं पाता कुछ हद तक ये बात सही भी हो सकती है लेकिन साथ ही एक बात और सोचने वाली है कि इन बदहाल सुविधाओं में महिला खिलाडि़यों क्‍या स्थिति होती होगी। उन्‍हें तो और कम संसाधन उपलब्‍ध होते होगें। तो दूसरी समस्‍याओं से भी उन्‍हें दो चार होना पड़ता है। मसलन घर परिवार से लेकिर समाज का विरोध हमारे देश में महिला असुरक्षा का माहौल बेटियों पर बेटों के मुकाबलें कम खर्च करने कि बुरी परम्‍परा इत्‍यादि लेकिन अपने कुछ कर गुजरने चाहत के आगे इन महिलाओं ने बाधाओं को आड़े नहीं आने दिया, कहते हैं कि क्षेत्र कोई भी सफल होने के लिये अनुशासन के साथ कड़ी मेहनत की जरुरत होती है। क्‍योंकि सफलता का कोई सार्टकट नहीं होता है। साक्षी मलिक जहॅा बचपन से ही कुश्‍ती लड़ रही है वही पीवी सिंधु दर्जनों किलोमीटर का सफर तय करके ट्रेनिंग लेने जाती थी। दुनिया से टकाराकर जिस तरह का जीवन इन युवतियों ने दिखलाया है देश उससे देश की हर महिला हर नारी को प्रेरणा लेनी चाहिए इस बात ने कोई शक नहीं कि अगर नारियॉ चाह ले तो समाज की सोच बदलने में ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगेगा।
 सही मायने में यह बेटियॉ भारत की महिलाओं के लिए प्रेरणा है साथ ही साथ यह उन मॉ और पिताओं के लिए प्रेरणादायी है जो बेटी के जन्‍म से दुखी हो जाते है हालाकि सबकुछ होने के बावजूद इन महिलाओं का आत्‍मविश्‍वास ही इन्‍हें शिखर तक पहुचाने में सहायक रहा है। और अगर आगे भी महिलाए बढ़ी तो उनका आत्‍मविश्‍वास कठोर परिश्रम जैसे तत्‍व ही मायने रखेगे।
हॉ अगर सरकार के साथ समाज भी उनकी ठोस मदद करने का संकल्‍प व्‍यक्‍त करे उनकी राह कुछ आसान जरूर हो जाएगी। किन्‍तु राह आसान हो या कठिन नारी शक्ति ने हर रास्‍ते पर खुद को साबित कर दिखलाया है और यह क्रम निश्चित रूप से आगे जारी रहेगा। हर क्षेत्र मे ठोस उपलब्धियों के साथ जहॉ तक बात ओलम्पिक की है तो भारतीय महिलाओं कि ओलम्पिक सफलता का रहस्‍य आगे बढ़ने कि उनकी लगन व कठिन मेहनत है तो उसका प्रेरक महत्‍व आने वाले भविष्‍य में बेहद सटिक साबित होगा इस बात में दो राय नहीं है।


एक नजर में कुछ भारतीय महिला खिलाड़ी


साइना नेहवाल

 भारत की शटल गर्ल साइना नेहवाल ने 2014 में तीन अन्‍ताराष्‍ट्रीय खिताब चाइना ओपन इण्डियन ओपन ग्रैण्‍ड पीक्‍स गोल्‍ड और आस्‍ट्रेलियन ओपन सुपर सीरिज जीतने में कामयाबी हासिल की। उबेर कप को बैडमिटंन का प्रतिष्‍ठत टूर्नामेंट माना जाता है। और उसमें भारतीय टीम कास्‍य पदक जीतने मे कामयाब रही साइना भी इस टीम का हिस्‍सा थी।
साइना नेहवाल ने पूरे देश में बैटमिंटन के खेल को लोक प्रिय बनाने में महती भूमिका निभाई वे अब युवा प्रतिभावों के लिये रोल माडल बन चुकी है। साइना ने अपने अन्‍ताराष्‍ट्रीय कामयाबीयों में भी चौथी पायदान हासिल की हालांकि यह बोलना बेईमानी ही होगा कि 2 दिसंबर 2010 और 20 जुलाई 2013 को साइना दुनिया की नंबर 2 खिलाड़ी बनने का रूतबा भी हासिल कर चुकी है। पीवी सिंधु हैदराबाद की स्‍टार बैटमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल जहॉ भारतीय महिला बैडमिंटन की चुनौती बनकर पूरी दुनिया में छा गई उसी तरह पीवी सिंधु भी ने लगातार कामयाबी हासिल करके नई आशा कि किरण जगा दी। 19 वर्ष की सिंधु देश की ऐसी पहली महिला खिलाड़ी बन गई जिन्‍होंने विश्‍व बैडमिंटन चैमिप्‍यन शिप में लगातार दो पदक हासिल किए है। 2013 और 2014 की विश्‍व बैडमिंटन प्रतियोगिता में सिंधु ने कास्‍य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया यही नहीं इंचियोन एशियाई खेलों की टीम स्‍पर्धा में जब भारत ने कांस्‍य पदक जीता तब भी सिंधु भारतीय टीम का हिस्‍सा थी।
एमसी मैरीकाम साइना और सिंधु के बाद यदि किसी तीसरी महिला खिलाड़ी का ख्‍याल जहन में आता है तो वह एमसी मैरीकॉम ही है। जिन्‍होंने अपनी उम्र को कभी अपने उपर हावी नहीं होने दिया भारत में महिलाए बाल बच्‍चे होने के बाद खेल से सन्‍यास ले लेती हैं। लेकिन मेरीकॉम उनमे से शुमार नहीं हुई। भारतीय महिला बॉक्सिगं का आइकन बन चुकी मैरीकॉम ने 3 बच्‍चों की मा बनने के बाद भी मुक्‍केबाजी के रिंग में जो पंच बरसाए वह दीगर महिलाओं के लिए एक मिसाल बन चुके हैं। 5 बार की विश्‍व चैंपियन मैरीकॉम ने छठी विश्‍व मुक्‍केबाजी चैंमिपयनशिप में भी पदक जीतने का गौरव हासिल किया। ग्‍वांगझू एशियाड में जब मैरीकॉम ने कांस्‍य पदक जीता था तब लगा था कि वे अगले एशियाड में नहीं उतरेगी लेकिन 2014 के इंचियोन एशियाड में उन्‍होंने स्‍वर्ण पदक जीतकर पूरे एशियाई जगत में यह साबित कर दिखाया कि उनकी बाजुओं में अभी भी फौलाद भरा हुआ है।


मैरीकॉम

 की इसी अटूट खेलभावनाने बॉलीवुड को भी आकर्षित कर डाला और उनके जीवन पर फिल्‍म मैरीकॉम बनी जिसमें मैरीकॉम का किरदार प्रियंका चोपड़ा ने बखूबी निभाया। सानिया मिर्जा पाकिस्‍तानी क्रिकेटर शोएब मलिक की बीवी बनने के बाद भी सानिया मिर्जा ने टेनिस का दामन नहीं छोड़ा और वे अभी भी कामयाबियों की नई मंजिले तय करती जा रही है। 2014 का साल भी सानिया के लिए बेहद खास रहा। उन्‍होंने अपने टेनिस करियर का तीसरा ग्रैंड स्‍लैम खिताब (मिश्रित युगल) जीता। 2009 में आस्‍ट्रेलियन ओपन और 2012 में फ्रेंच ओपन के बाद 2014 में सानिया ने अमेरिकी ओपन में ब्रूनो सोयर्स के साथ मिश्रित युगल खिताब जीतने में सफलता पाई। यही नहीं सानिया डब्‍ल्‍यूटीए टूर फाइनल्‍स जीतने वाली देश की पहली महिला टेनिस खिलाड़ी भी है। यह कामयाबी उन्‍होंने कारा ब्‍लैक को साथ लेकर हासिल की ।
भारत की यह टेनिस सनसनी अंतरराष्‍ट्रीय टेनिस स्‍पर्धाओं की खातिर पहले इंचियोन एशियाई खेलों में हिस्‍सा नहीं ले रही थी लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी से उनकी दिल्‍ली में मुलाकात हुई तब जाकर देश की खातिर उन्‍होंन अपना इरादा बदल दिया। एशियाड में सानिया के साकेत सायेनी के साथ मिश्रित युगल में जोड़ी बनाई और अपना गला सोने के पदक से सजाया। महिला युगल में भी सानिया मिर्जा के खाते में कांस्‍य पदक आया।


सरिता देवी:

2014 में जहां एक ओर एशियाई खेलों में भारतीय कामयाबी की नई इबारत लिखी गई वहीं एक खराब प्रसंग ने नए विवाद को जन्‍म दे दिया।यह विवाद था एल. सरिता देवी का। सरिता को जब लाइटवेट भार वर्ग के सेमिफाइनल मुकाबले में मेजबान कोरियाई मुक्‍केबाज के खिलाफ परास्‍त घोषित किया गया तो वे रिंग में ही रो पड़ी और कास्‍य पदक भी लौटा दिया।
एशियाई खुद सरिता ने भी बाद में व्‍यावहार के लिए माफी मांग ली थी। सरिता पर ज्‍यादा सख्‍त कार्यवाही न हो इसके लिए सचिन तेंदुलकर तक केंन्‍द्रीय खेल मत्री से मिले सरिता का विवाद लंबा चला।
सीमा अंतिल: भारतीय एथलेटिक्‍स जगत में कृष्‍णा पुनिया के बाद कोई नाम उभरा है तो वह नाम सीमा अंतिल का है। हरियाणा की इस एथलीट ने डोपिंग के कड़वे सच का सामना करने के बाद खुद को उभारा। यह एक संयोग ही है कि सोनीपत में जन्‍म लेने वाली सीमा का विवाह भी पुनिया परिवार में ही हुआ है। उन्‍होंने अंकुश पुनिया से विवाह किया जो उनके कोच थे।

आज 14 बरस  पहले भारतीय एथलेटिक्‍स सीमा ने तब नाम कमाया था जब वे 17 बरस की उम्र में विश्‍व जूनियर चैंम्पियनशिप में स्‍वर्ण पदक जीतने में सफल रही थी। राष्‍ट्रीय कीर्तिमान धारी 6 फीट ऊंची सीमा ने 2006 राष्‍ट्रमंडल खेलों में चक्‍काफेंक प्रतियोगिता में भारत के लिए चांदी का तमगा जीता। 2010 के दिल्‍ली राष्‍ट्रमंडल खेलों में उन्‍होंने कांस्‍य पदक जीता।
सीमा की कामयाबी यहीं नहीं थमी अलबत्‍ता 2014 में इंचियोन एशियाड में उन्‍होंने सोने के पदक को अपने गले में पहना। सीमा चक्‍का फेंक के अलावा भारत की 4 गुना 400 मीटर रेस में भी उतरी और उन्‍होंने मंदीप कौर पूवम्‍मा माचेटीरा टिंटू लुका और प्रियंका पंवार के साथ देश को सोना दिलवाया।


दीपिका पल्‍लीकल:

 भारत की महिला स्‍कॉश खिलाडि़यों में नंबर एक पर दीपिका पल्‍लीकल का नाम शुमार होता है। 2014 का साल दीपिका के लिए नई खुशियों की सौगात लेकर आया। उन्‍होंने ग्‍लास्‍गो राष्‍ट्रमंडल खेलों में जोशना चिनप्‍पा के साथ जोड़ी बनाई और भारत को स्‍वर्ण पदक दिलवाया। यह पहला प्रसंग था जबकि राष्‍ट्रमंडल खेलों की महिला युगल में भारत ने कोई पदक जीता हो। यही नहीं राष्‍ट्रमंडल खेलों के इतिहास में  स्‍कॉश में भारत को यह पहला पदक था।
पद्मश्री से सम्‍मानित दीपिका पल्‍लीकल ने इंचियोन एशियाई खेलों में जानदार प्रदर्शन किया और एकल मुकाबलों के सेमीफाइनल में पहुँच कर कांस्‍य पदक अपने गले में पहना। इस तरह एशियाई खेलों की स्‍कॉश प्रतियोगिता में भी दीपिका पदक जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बन गई। दीपिका के शानदार प्रदर्शन का ही नतीजा रहा कि वे आज से 4 साल पहले दुनिया की टॉप 10 खिलाडि़यों में जगह बनाने में कामयाब हुई थीं।
वीनेश फोगाट: कुश्‍ती में सिर्फ भारतीय पुरूष पहलवान ही कामयाबी हासिल नहीं कर रहे है बल्कि महिला पहलवानों ने भी देश का नाम ऊचा किया है। भारतीय महिलाओं ने अपनी कुश्‍ती कला का शानदार प्रदर्शन करते हुए राष्‍ट्रमंडल खेलों में 2 स्‍वर्ण 3 रजत और 1 कांस्‍य पदक जीता। एशियाई खेलों में भी भारतीय पहलवान खाली हाथ नहीं लौटी और उन्‍होंने भी 2 कांस्‍य पदक जीते। ग्‍लास्‍गो राष्‍ट्रमंडल में वीनेश फोगाट का जलवा दिखाई दिया जब उन्‍होंने 48 किलोग्राम फ्रीस्‍टाइल भार वर्ग में अपना गला सोने के पदक से सजाया। वीनेश ने एशियाई खेलों में भी कांस्‍य पदक जीतने में सफलता हासिल की।


वीनेश-

 के पदचिन्‍हों पर चलकर गीतिका जाखड़ ने भी राष्‍ट्रमंडल खेलों में 63 किलोग्राम वर्ग में रजत और एशियाई खेलों में कांस्‍य पदक जीता। वीनेश और गीतिका के अलावा भारत की तीसरी पहलवान बबीता कुमारी भी ग्‍लास्‍को राष्‍ट्रमंडल खेलों में भारत की झोली में सोने का पदक डालने में कामयाब हुई।

दीपा कर्माकर: जिम्‍नास्टिक में भी भारत अब  अपनी दखल रखने लगा है और इसमें दीपिका कर्माकर का नाम शीर्ष पर है। दीपिका देश की ऐसी पहली महिला जिम्‍नास्‍ट बन गई है जिन्‍होंने ग्‍लास्‍गो राष्‍ट्रमंडल में भारत के लिए जिम्‍नास्टिक का दूसरा पदक जीता। इससे पहले 2010 में आशीष ने भारत के लिए पदक जीता था। महिलाओं की वोल्‍ट स्‍पर्धा 20 साल की दीपा ने 14366 अंक अर्जित करके कासे का पदक जीता।वे देश की पहली महिला जिम्‍नास्‍ट बन गई हैं जिन्‍होंने राष्‍ट्रमंडल में कोई पदक जीता हो। 
                                           
                                    



तानिया सचदेव-
तानिया सचदेव ने 8 साल की उम्र में अंतराष्‍ट्रीय प्रतियोगिता जीतकर  कीर्तिमान स्‍थापित किया था। तानिया सचदेव ने रिकॉर्ड तेजी से महज 9 गेम में 65 प्‍वाइंट लेकर एशियन चेस चैंपियनशिप पर कब्‍जा जमाकर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। तानिया 2009 में अर्जुन अवार्ड भी जीत चुकी हैं। तानिया सचदेव ने राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जीते हैं। तानिया ने 2005 में महिला ग्रैंडमास्‍टर का तमगा हासिल किया तो 2008 में अंतर्राष्‍ट्रीय ग्रैंडमास्‍टर बन गईं।
शर्मिला निकोलेट
इंडो-फ्रैंच मूल की शर्मिला की मां बेंगलूरू की और पिता फ्रांस के हैं। शर्मिला ने बैंगलूरू में ही जन्‍म लिया और शुरू से खेलों में सक्रिय रहीं। शर्मिला निकोलेट सब-जूनियर तैराकी चैंपियन रह चुकी हैं। तैराकी में शर्मिला के नाम 72 गोल्‍ड मेडल हैं। शर्मिला ने 11 साल की उम्र से गोल्‍फ में दिलचस्‍पी लेनी शुरू की और देश-विदेश स्‍तर पर तमाम बड़े टूर्नामेंट जीते। शर्मिला ने गोल्‍फ में साल 2011 में हीरो होंडा इंडिया वुमेन चैंपियनशिप जीता और लगातार लाइम-लाइट में बनीं रही हैं।

अश्विनी पोनप्‍पा
अश्‍वनी पोनप्‍पा एक भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। 27 साल की इस खिलाड़ी ने राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर नाम कमाया है। वे ज्‍वाला गुट्टा के साथ राष्‍ट्रमंडल खेलों में स्‍वर्ण पदक जीत चुकी है और विश्‍व चैम्पियनशिप में कांस्‍य पदक जीतकर इतिहास रचा था। वह अपने शर्मीली आंखो और प्‍यार भरी मुस्‍कान के लिये जानी जाती है। 


ज्‍वाला गुट्टा
प्रोफेशनल बैडमिंटन प्‍लेयर ज्‍वाला गुट्टा ने देश के लिये तमाम प्रतिस्‍पर्धाओं में मेडल जीते हैं। अपनी खूबसूरती से भी ज्‍वाला ने लोगों का ध्‍यान अपनी ओर खींचा है। उनके ग्‍लैमरस फोटोशूट को भला कौन भुला सकता है। लेकिन खेल में भी ज्‍वाला ने उतना ही नाम कमाया है। ज्‍वाला ने दिल्‍ली कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में भारत के लिए 2 स्‍वर्ण और एक रजत पदक जीते हैं। बाएं हाथ से नेट पर आक्रामक खेलने वाली ज्‍वाला गुट्टा 2014 तक 14 बार राष्‍ट्रीय चैंपियनशिप जीत चुकी हैं। तेलगू पिता और चीनी मां की बेटी ज्‍वाला लंबे समय से देश की शीर्ष महिला खिलाड़ी हैं।


प्राची तेहरान
भारत में नेटबॉल को नई दिशा देने में जुटी प्राची तेहरान से लोग कम ही परिचित हैं। प्राची कोर्ट पर जितनी तेज-तर्रार हैं असल जिंदगी में उतनी ही मासूम। प्राची तेहरान 2010 में दिल्‍ली कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के समय भारतीय टीम की कमान संभाल चुकी हैं। 25 साल की प्राची तेहरान दिल्‍ली की जाट फैमिली में पैदा हुईं। और नेटबॉल के साथ ही बॉस्‍केटबॉल की भी प्रोफेशनल प्‍लेयर हैं। खूबसूरत प्राची को क्‍वीन ऑफ द कोर्ट का निक नेम भी मिला हुआ है। भारत ने प्राची की अगुआई में ही पहला अंतर्राष्‍ट्रीय मेडल साल 2011 में श्रीलंका में आयोजित साउथ एशियन बीच गेम्‍स प्रतियोगिता में जीता। 


मिताली राज
मिताली राज भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्‍तान हैं। टेस्‍ट क्रिकेट में पहला दोहरा शतक (214) लगाने वाली पहली महिला खिलाड़ी भी हैं। भारतीय महिला क्रिकेट में तेंदुलकर के उपनाम से जानी जाने वाली मिताली के नाम भारत की ओर से सबसे ज्‍यादा रन बनाने का रिकार्ड है। वे वन डे में (6000) सबसे ज्‍यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी हैं। मिताली राज को भी अपने खेल में बेहतर प्रदर्शन के लिये पद्म श्री से नवाजा गया है।


झूलन गोस्‍वामी
झूलन गोस्‍वामी ने 2002 में पदार्पण किया था और उन्‍हें 2007 में आईसीसी की साल की सर्वश्रेष्‍ठ महिला क्रिकेटर चुना गया था अभी हाल ही में फ़रवरी 2018 में झूलन गोस्‍वामी ने विश्‍व क्रिकेट में 200 विकेट लेने का रिकॉर्ड स्‍थापित किया वे विश्‍व की वन डे क्रिकेट में विश्‍व की पहली सबसे ज्‍यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी बन गयी हैं।
साक्षी मलिक
मूलत: रोहतक हरियाणा की रहने वाली खिलाड़ी जिसकी मां इन्‍हें एथलीट बनाना चाहती थीं लेकिन उन्‍हें रेसलिंग से लगाव था। 2016 के रियो ओलंपिक में 58 किलो वर्ग में कुस्‍ती में कांस्‍य पदक जिताकर भारत का नाम रोशन किया।



भारतीय महिलाओं का खेलों में प्रतिनिधित्‍व:


अगर ओलंपिक के सन्‍दर्भ में हम बात करते हैं तो खेल का महासंग्राम कहे जाने वाले ओलंपिक की शुरूआत 1869 एथेंस से हुई और भारत के एथलीट्स इसमें 1924 से हिस्‍सा ले रहे हैं।1900 से समर ओलंपिक में महिला खिलाडि़यों ने खेलना शुरू किया,1924 में पहला बार 2 महिला खिलाडि़यों ने ओलंपिक में भाग लिया, भारत की ओर से भाग लेने वाली पहली ओलंपियन मेरी डिसूजा थी जिन्‍होने 1952 हेलसिकी ओलंपिक में 100 और 200 मी में 5वें और 7वें स्‍थान पर रही थी।
आश्चर्य है कि इतने लम्‍बे समय से हिस्‍सा लेने के बाद भी भारत को आज तक कुल 28 पदक ही हासिल हुए हैं और इन 28 पदक में भी 5 पदक महिलाओं ने जीते हैं 2000 में कर्णम कल्‍लेश्‍वरी ने 69किग्रा भारोत्‍तोलन मे कास्‍य, 2012 में सायना नेहवाल ने बैडमिंटन में कास्‍य,साक्षी मलिक ने 58 किलो वर्ग की फ्री स्‍टाइल कुश्‍ती में कास्‍य ,मैरीकाम ने 51 किलो वर्ग मुक्‍केबाजी में ,2016 रियो ओलंपिक में पी वी सिन्‍धु ने बैडमिंटन में भारत को महिलाओं में पहला रजत पदक जिताया।
न केवल महिलाओं के नजरिये से बल्कि खेल के स्‍तर पर हमारे देश को समीक्षा करनी चाहिए, भारत के लिए ओलंपिक खेलों में हम मेडल की बात करें तो कर्णम कल्‍लेश्‍वरी ने ओलंपिक में महिलाओं के लिए खाता खोला तो गलत नहीं होगा, कर्णम मल्‍लेश्‍वरी के सिडनी ओलंपिक में मेडल जीतने से पहले भारत की किसी महिला ने ओलंपिक में मेडल नही जीता था, साइना नेहवाल ,तीन बच्‍चों की मॉं एम सी मैरीकाम , साक्षी मलिक , पी वी सिन्‍धु, विवाहिता सानिया मिर्जा ने अपने उत्‍कृष्‍ट प्रदर्शन से भारत का सिर दुनिया के खेल मंच पर ऊंचा  किया है। इन खिलाडि़यो को पूरे भारत की तरफ से कड़कदार सेल्‍यूट।

खेलों से महिला सशक्तिकरण के लाभ:

महिलाओं को एक सार्थक एवं उद्देश्‍यपूर्ण जीवन जीने का आत्‍मविश्‍वास दिलाने को ही सही मायनों में महिला सश‍क्तिकरण कहते हैं। खेल दूसरों पर उनकी निर्भरता समाप्‍त करते हुए उन्‍हे अपने आप में ही सबल बनाने का प्रयास है।
·        महिला सशक्तिकरण से महिलाओं को गरिमा और स्‍वतंत्रता के साथ अपने जीवन का नेतृत्‍व करनेमे सक्षम बनाता है।
·        यह उनका आत्‍मसम्‍मान बढ़ाता है।
·        इसकी वजह से उन्‍हे एक अलग पहचान मिलती है।
·        वे समाज में सम्‍मानित पदों को प्राप्‍त करने मे  कामयाब होती हैं।
·        वे वित्‍तीय रूप से आत्‍मनिर्भर होती हैं ।
·        वे समाज के कल्‍याण के लिए सार्थक योगदान दे सकती हैं।
·        वे सक्षम नागरिक बन‍ती हैं और देश के सकल खेल उत्‍पाद को बढ़ाने में सहयोग कर पाती हैं।
·        वे देश के संसाधनों में उचित एवं न्‍यायसंगत हिस्‍सा प्राप्‍त करने में कामयाब होती हैं ।
महिला सशक्तिकरण की आवश्‍यकता:
·        बिना महिला सशक्तिकरण के हम अन्‍याय , लिंग-भेद और असमानताओं को दूर नहीं कर स‍कते।
·        अगर महिलाऍ सशक्‍त नहीं है तो उन्‍हे जीवन में सुरक्षा और संरक्षण का आनंद प्राप्‍त नहीं हो सकता । 
·        इससे उन्‍हे कार्य करने के लिए सुरक्षित वातावरण प्राप्‍त होता है।
·        महिलाओं के उत्‍पीड़न और शोषण के खिलाफ सशक्तिकरण एक शक्तिशाली औजार के रूप में कार्य करता है।
·        यह महिलाओं के लिए पर्याप्‍त कानूनी संरक्षण प्रदान करने का एक बड़ा साधन है।
·        अगर सामाजिक और आर्थिक रूप से महिलाऍ सशक्‍त नहीं की गई तो वे अपनी खुद की पहचान का विकाश नहींकर पाएंगी।
·        अगर महिलाओं को रोजगार नहीं प्रदान किया गया तो वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
·        महिलाऍ बेहद रचनात्‍मक व बुद्धिमान होती हैं और इस वजह से सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों मे उनका योगदान प्राप्‍त करना जरूरी है।
·        एक न्‍यायसंगत व प्रगतिशील समाज के लिये महिलाओं को संघर्ष के समान अवसर प्रदान करने की जरूरत है।
महिला सशक्तिकरण के साधन :
शिक्षा: उचित और पर्याप्‍त शिक्षा के बिना महिलाओं को सशक्‍त व्‍यक्तित्‍वों मे परि‍वर्तित नहीं किया जा सकता ।उन्‍हे उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए ताकि वे एक ज्ञानवान समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।
संचार कौशल: प्रभावी संचार कौशल के बिना महिलाएं अपनी आवाज बुलंद नहीं कर सकती । सफल होने के लिए उनका प्रभावी ढंग से संवाद कर पाना उनके लिए जरूरी है। एक परिवार टीम या कंपनी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए नेताओं के रूप में उन लोंगों को अपनी बात कहने की आवश्‍यकता है।
प्रयोज्‍य आय: महिलाओं के जीवन में महत्‍वपूर्ण वित्‍तीय फैंसलों में उनकी भी सुनी जाए इसके लिए उन्‍हे अच्‍छा कमाने की आवश्‍यकता है। वित्‍तीय रूप से आत्‍मनिर्भर महिला हमारे जीवन एवं हमारे कारोबार के विकाश में भी अपना योगदान देती है।
इंटरनेट की शक्ति: इंटरनेट की उपलब्‍धता ने महिलाओं के सामाजिक संपर्क के दायरे में वृद्धि करने के साथ ही उनके ज्ञान और जागरूकता का भी विकाश किया है। दुनिया भर मे फैले इंटरनेट ने महिलाओं से संबंधित सभी मिथकों उनके बारे में प्रचलित गलत धारणाओं को समाप्‍त कर दिया है।

निष्‍कर्ष- यदि हम सही मायनों में महिला सशक्तिकरण करना चाहते हैं तो पुरूष श्रेष्‍ठता और पितृसत्‍तात्‍मक मानसिकता का उन्‍मूलन किया जाना बेहद जरूरी है इसके लिए बिना किसी भेदभाव के शिक्षा एवं रोजगारके क्षेत्रों मे महिलाओं को समान अवसर प्रदान किए जाने की आवश्‍यकता है।
सन्‍दर्भ सूची:
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4. कार्यस्‍थलों पर भेदभाव से संघर्ष प्रगति मे बाधाएं धम (आई एल ओ की पत्रिका )संख्‍या 43दिसंबर 2011 पृष्‍ठ 19
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6. निर्मल रानी महिला सशक्तिकरण कितनी हकीकत कितना फसाना 2011
7. वेद प्रकाश अरोड़ा राष्‍ट्रमण्‍डल खेलने रचा इतिहास नारी शक्ति : (प्रवक्‍ता कॉम पर छपा लेख ) 2010
                                
   

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